एक साल यूँ बह चला हाथोंसे जैसे फिसली रेत ,
सहर लेकर आई है आज खुशियोंका संदेश .......
दिन चढ़ना दिन ढलना ये तो जिंदगी की रीति है ,
जन्म होता है जिस घड़ी मृत्यु तभी होती निश्चित है ..........
नया सूरज है नया सवेरा ,नई है आशाएं और उमंग ,
अकेले क्यों रहे वीराने में तनहा ?
बाटें अपनी खुशियाँ और औरोंके गम ,
आज दीवाली की रात की अमावस्या को दीयों से सजादे
किसीके आँसूओं को अपनी हँसी देकर मिटा दे ...........
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