एक अनाम शायर की कलम को मैंने यूं कहते हुए पाया :
सूरजने चाँद से जरूर मोहब्बत की होगी ,तभी चाँद पर दाग है ,
चाँदने की होगी बेवफाई ,इसी लिए सूरज में इतनी आग है .....
मैंने कुछ ऐसे ही लिखा चाँद की वकालत करते हुए :
चाँद को यूं बेवफा मत समजिये......
चाँद तो तैयार था पूरा पिघल जाने को सूरजकी झुलसा देती आगमें,
पर चाँद का यूं झुलस जाना सूरजको गंवारा न हुआ ,
तभी एक रात सूरज चुपचाप वहांसे रवाना हुआ ........
आज तक हमने चाँदको रातमें करवटें बदलकर ,
सूरजका इंतजार करते हुए देखा है ....
पूर्णमासीकी पूरी रात चाँद सोता नहीं ,
थका हुआ चाँद अमावस को आता ही नहीं ....
हमने चाँद के आंसूओ को देखा है ,
सितारे बनकर आसमान पर चमकते हुए रातों में ....
हम रहे या ना रहे ...
चाँद सूरज की ये दास्ताने मोहब्बत तो अमर है .....
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